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रविवार, 29 अगस्त 2010

मेजर ध्यानचंद को भी मिले भारत रत्न !!


हाकी के जादूगर ध्यानचंद की उपलब्धियों को पेले, माराडोना और डान ब्रैडमेन के समकक्ष बताते हुए पूर्व दिग्गजों ने उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिए जाने की मांग की है। उनका यह भी कहना है कि भारतीय हाकी की सुध लेकर ही इस महान खिलाड़ी को सच्ची श्रृद्धांजलि दी जा सकती है।
तीन ओलंपिक [1928, 1932 और 1936] में स्वर्ण पदक जीतने वाले करिश्माई सेंटर फारवर्ड ध्यानचंद को पद्मभूषण से नवाजा जा चुका है हालांकि हाकी समुदाय का कहना है कि उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें 'भारत रत्न' मिलना चाहिए। अपने पिता को ध्यानचंद के साथ खेलते देख चुके पूर्व ओलंपियन कर्नल बलबीर सिंह ने कहा, 'यह दुख की बात है कि उनकी उपलब्धियों को भुला दिया गया है जबकि फुटबाल में जो स्थान पेले, माराडोना का या क्रिकेट में डान ब्रैडमेन का है, दद्दा ध्यानचंद का हाकी में वही दर्जा है। भारत में किसी खिलाड़ी का किसी खेल में इतना योगदान नहीं रहा होगा।'
वहीं 'चक दे इंडिया' फेम पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मीर रंजन नेगी ने कहा, 'लगातार पतन की ओर अग्रसर भारतीय हाकी की सुध लेकर ही उन्हें श्रृद्धांजलि दी जा सकती है।' उन्होंने कहा, 'आने वाली पीढि़यों को उनकी उपलब्धियों से वास्ता कराना जरूरी है और इसके लिए सत्तासीन लोगों को भारतीय हाकी की सुध लेनी होगी।' जीवन के आखिरी दौर में मुफलिसी से जूझते रहे ध्यानचंद पुरस्कारों के पीछे कभी नहीं रहे। उनके बेटे और पूर्व ओलंपियन अशोक कुमार ने बताया, 'उन्हें कभी कुछ ना मिलने का असंतोष नहीं रहा।'
म्युनिख [1972] और मांट्रियल ओलंपिक [1976] खेल चुके अशोक ने कहा, 'आखिरी दिनों में पूरा घर उनकी महज 400 रुपये मासिक पेंशन पर गुजारा करता रहा। घर में कुछ नहीं था लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली। वह कहते थे कि हमारा काम मैदान पर खेलना है, पुरस्कार मांगना नहीं।' उन्होंने कहा, '1936 ओलंपिक में जर्मनी की हार के बाद हिटलर ने उनसे पूछा कि तुम कौन हो तो उन्होंने कहा कि सेना में सूबेदार। हिटलर ने उन्हें जर्मनी आने और सेना में उच्च पद देने का न्यौता दिया जो उन्होंने ठुकरा दिया। राष्ट्रीयता की यह भावना मिसाल थी जो उनमें कूट कूटकर भरी थी।'
मांट्रियल ओलंपिक में भारत के सातवें स्थान पर रहने से दुखी ध्यानचंद ने एम्स में डाक्टर से कहा, 'भारतीय हाकी मर रही है। इसके बाद वे कोमा में चले गए और 1979 में उन्होंने दम तोड़ दिया।' अशोक ने कहा, 'हम मैच हारने के बाद उनसे मुंह छिपाते फिरते थे। वह आखिरी दिनों में भारतीय हाकी की दशा से काफी दुखी थे और दुख की बात तो यह है कि आलम आज भी कमोबेश वही है।' कर्नल बलबीर ने कहा, 'उन्होंने यूरोपीय हाकी का भी स्तर देखा था और वे भारतीय हाकी की दशा भी देख रहे थे। हम अतीत की उपलब्धियों पर गर्व करके खुश होते रहे लेकिन भविष्य की सुध नहीं ली और आज भी क्या बदला है।'
ध्यानचंद से कई मौकों पर मिल चुके कर्नल बलबीर ने कहा, 'इतने महान खिलाड़ी होने के बावजूद दंभ उन्हें छू तक नहीं गया था और वह हमेशा कहते थे कि उनके साथी खिलाड़ियों ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है।' उन्होंने कहा, 'वह कभी गेंद को एक सेकेंड से ज्यादा पकड़कर नहीं रखते थे और टीम वर्क की एक मिसाल थे। मुझे फख्र है कि मैंने उसी पंजाब रेजिमेंट की कमान संभाली जो कभी मेजर ध्यानचंद के हाथ में थी।' वहीं नेगी ने ध्यानचंद को अपेक्षित पुरस्कार और सम्मान नहीं मिल पाने की बात दोहराते हुए कहा, 'क्रिकेट के दीवाने इस देश में हाकी को भले ही राष्ट्रीय खेल बना दिया गया हो लेकिन उसे कभी उसका दर्जा नहीं मिल पाया।' उन्होंने कहा, 'सही मायने में तो ध्यानचंद को बरसों पहले भारत रत्न मिल जाना चाहिए था लेकिन हाकी की सुध किसे है। इसके लिए पावरफुल लोगों को पहल करनी होगी। हम खिलाड़ी कुछ नहीं कर सकते।' 
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अगर किसी प्रधानमंत्री को भारत रत्न दिया जा सकता है ........ किसी प्रधानमंत्री के घुटनों को बदलने वाले डाक्टर को भारत रत्न दिया जा सकता है ...........तो फिर मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया अब तक ??
वह कौन से मानक है जिन से सरकार यह निर्धारित करती है कि किस को कौन सा सम्मान देना है  और कब देना है ?? 
कौन है जो जवाब देगा इस का ??
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जागो सोने वालो ...

बुधवार, 18 अगस्त 2010

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस :- साजिशो के दरमियाँ - कल भी और आज भी !!

आज १८ अगस्त है .........आपका सवाल होगा तो क्या ख़ास है इस दिन में ........तो साहब आज के ही दिन एक बहुत एक बहुत बड़ी पहेली शुरू हुयी थी .........जिस का आजतक कोई भी जवाब नहीं मिल पाया है !
बताया जाता रहा है कि आज के ही दिन यानि के १८ अगस्त १९४५ के दिन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हुई थी। 

वैसे यह सच है या नहीं इस पर आज तक बहस चल रही है ! 

जो भी हो इस से नेता जी के भारत देश की आज़ादी के लिए किये गए योगदान पर कोई फर्क नहीं पड़ता ! 

मैं उन लोगो में से हूँ जो यह मानते है कि आज़ादी केवल किसी ' एक ' के कारण नहीं मिली और ना ही अहिंसा से मिली है बल्कि पूरे भारत की जनता की कोशिशो और खुनी बलिदानों का नतीजा है !
नेता जी की इस तथाकथित 'मौत' के पीछे क्या कारण थे इस से जुडी हुयी कुछ बातों पर लिखी एक पोस्ट का लिंक नीचे दे रहा हूँ .............हो सके तो जरूर पढियेगा और जानिये कि हम लोगो को क्या क्या नहीं बताया गया उनके बारे में .......एक सोची समझी साजिश के तहत !!! 

एक रिपोस्ट :- नेताजी की मृत्यु १८ अगस्त १९४५ के दिन किसी विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी।

 

यहाँ आप सब के लिए एक और पोस्ट का भी लिंक दे रहा हूँ जिस में एक ऐसा चित्र है जो आप सब को चौंका देगा !!

 

नाज़-ए-हिन्द सुभाष की विशेष कड़ी: नेहरूजी के पार्थिव शरीर के पास खड़ा यह भिक्षु कौन है?

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अब फैसला ..............आप सब पर छोड़ता हूँ .......

जागो सोने वालो ...

रविवार, 15 अगस्त 2010

हमें नाज़ है आप सब पर !!




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कोई हमारे और आपके लिए इस देश की सीमा पर जाग रहा है ताकि हम और आप चैन से सो सकें .......... अपने अपने परिवारों के साथ रह सकें .......... खुद को आज़ाद कह सकें !! 
आज के दिन आईये हम भी जागे और कहें उन सब से .........हमें नाज़ है आप सब पर !! 
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जागो सोने वालों ...
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आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं ! 
जय हिंद !!